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कबूतर कैसे अपने घर का रास्ता खोज लेते हैं? जानें इसके पीछे का रहस्य
नई दिल्ली : Homing Pigeons: किसी एक स्थान पर घर की तरह रहने वाले कबूतरों को अपना रास्ता खोजने की अदभुत क्षमता के लिए जाना जाता है. वह बदलते परिदृश्यों और जटिल रास्तों के बावजूद अपना गंतव्य तलाश कर लेते हैं और वह यह काम सदियों से इतनी अच्छी तरह से करते आ रहे हैं कि 2,000 साल पहले सुरक्षित संचार के स्रोत के रूप में उनका उपयोग किया जाता था.
कहते हैं कि जूलियस सीजर ने गॉल की अपनी विजय की खबर कबूतरों के जरिए रोम भेजी थी और नेपोलियन बोनापार्ट ने 1815 में वाटरलू की लड़ाई में इंग्लैंड से अपनी हार के बाद भी ऐसा ही किया था.
हम जानते हैं कि कबूतर दृश्य संकेतों का उपयोग करते हैं और ज्ञात यात्रा मार्गों के भूचिन्हों यानी लैंडमार्क के आधार पर अपना रास्ता पहचान सकते हैं. हम यह भी जानते हैं कि उनके पास एक खास चुंबकीय क्षमता होती है, जो उन्हें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करके नेविगेट करने में सहायता करती है.
लेकिन हम ठीक से नहीं जानते कि वे (और अन्य प्रजातियां) ऐसा कैसे करते हैं. इस संबंध में मेलबर्न यूनिवर्सिटी के डेविड सिम्पसन ने कहा कि प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में, मेरे सहयोगियों और मैंने एक सिद्धांत का परीक्षण किया, जिसमें कबूतरों के कानों के आंतरिक भाग में पाई जाने वाली छोटी गांठों में मौजूद लोहे से भरपूर सामग्री को उनकी चुंबकीय क्षमता से जोड़ने की कोशिश की गई है.
एक नए प्रकार के चुंबकीय सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करके, हमने यह जाना कि ऐसा नहीं है. लेकिन इस तकनीक ने हमारे लिए कई अन्य प्रजातियों में इसी तरह की प्रवृत्ति की जांच के लिए रास्ते खोल दिए.
वर्तमान परिकल्पना
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने चुंबकीय प्रभाव के संभावित तंत्र की खोज में दशकों का समय बिताया है. वर्तमान में दो मुख्यधारा के सिद्धांत हैं.
पहला एक दृष्टि-आधारित सिद्धांत है, जो यह कहता है कि घर में रहने वाले कबूतरों और अन्य प्रवासी पक्षियों की आंखों के रेटिना में ‘क्रिप्टोक्रोम’ नामक प्रोटीन होता है. ये एक विद्युत संकेत उत्पन्न करते हैं जो स्थानीय चुंबकीय क्षेत्र की ताकत के आधार पर भिन्न होता है.
यह संभावित रूप से पक्षियों को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को ‘देखने’ की क्षमता दे सकता है, हालांकि वैज्ञानिकों ने अभी तक इस सिद्धांत की पुष्टि नहीं की है.
कबूतरों के घर लौटने का दूसरा सिद्धांत उनके भीतर मौजूद चुंबकीय क्षमता पर आधारित है, जिससे उन्हें शायद चुंबकीय कण-आधारित दिशा ज्ञान प्राप्त होता है.
हम जानते हैं कि चुंबकीय कण प्रकृति में मैग्नेटोटैक्टिक बैक्टीरिया नामक बैक्टीरिया के एक समूह में पाए जाते हैं. ये बैक्टीरिया चुंबकीय कण उत्पन्न करते हैं और स्वयं को पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ जोड़े रखते हैं.
वैज्ञानिक अब कई प्रजातियों में चुंबकीय कणों की तलाश कर रहे हैं. संभावित कण एक दशक से भी अधिक समय पहले घरेलू कबूतरों की ऊपरी चोंच में पाए गए थे, लेकिन बाद के काम से संकेत मिलता है कि ये कण लोहे के भंडारण से संबंधित थे, चुंबकीय संवेदन से नहीं.
एक कबूतर के कान के अंदर झांकना
उन्होंने कहा कि नई खोज अब कबूतरों के भीतरी कान में चल रही है, जहां 2013 में पहली बार ‘क्यूटिकुलोसोम’ के रूप में जाने वाले लोहे के कणों की पहचान की गई थी.
कबूतर के कान के भीतरी भाग में अलग-अलग क्षेत्रों में एकल क्यूटिकुलोसोम स्थित हैं जहां अन्य ज्ञात संवेदी प्रणालियां मौजूद हैं (जैसे उड़ान के दौरान सुनने और संतुलन के लिए). सिद्धांत रूप में, यदि कबूतरों में चुंबकीय संवेदन प्रणाली होती है, तो इसे अन्य संवेदी प्रणालियों के करीब स्थित होना चाहिए.
लेकिन यह निर्धारित करने के लिए कि कबूतरों में लोहे के क्यूटिकुलोसोम मैग्नेटोरिसेप्टर के रूप में कार्य कर सकते हैं, वैज्ञानिकों को उनके चुंबकीय गुणों को निर्धारित करने की आवश्यकता है. यह कोई मामूली काम नहीं है, क्योंकि क्यूटिकुलोसोम रेत के एक दाने से 1,000 गुना छोटे होते हैं.
इससे भी ज्यादा मुश्किल यह है कि वे आंतरिक कान के भीतर केवल 30% बाल कोशिकाओं में पाए जाते हैं, जिससे उन्हें पहचानना और जांचना मुश्किल हो जाता है.
इस समस्या से निपटने के लिए मेलबर्न विश्वविद्यालय में हमारे समूह ने वियना के इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर पैथोलॉजी और बॉन में मैक्स प्लैंक सोसाइटी के सहयोगियों के साथ, कबूतर के आंतरिक कान में लोहे के क्यूटिकुलोसोम के चुंबकीय गुणों का पता लगाने के लिए एक नई इमेजिंग तकनीक की ओर रुख किया.
हमने एक चुंबकीय सूक्ष्मदर्शी विकसित किया है जो छोटे चुंबकीय कणों से निकलने वाले नाजुक चुंबकीय क्षेत्रों की कल्पना करने के लिए हीरे पर आधारित सेंसर का उपयोग करता है.
सिद्धांत का खंडन
हमने हीरे के सेंसरों पर सीधे रखे कबूतर के भीतरी कान के पतले वर्गों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया. ऊतक में अलग-अलग ताकत के चुंबकीय क्षेत्रों को प्रवाहित करके, हमने एकल क्यूटिकुलोसोम की चुंबकीय संवेदनशीलता को मापने में सफलता हासिल की.
हमारे परिणामों से पता चला कि क्यूटिकुलोसोम के चुंबकीय गुण उनके लिए चुंबकीय कण-आधारित मैग्नेटोरिसेप्टर के रूप में कार्य करने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं थे. वास्तव में, कबूतरों में चुंबकत्व के लिए आवश्यक संवेदी मार्गों को सक्रिय करने के लिए कणों को 100,000 गुना मजबूत होने की आवश्यकता होगी.
हालांकि, मायावी मैग्नेटोरिसेप्टर की खोज कम होने के बावजूद, हम इस चुंबकीय माइक्रोस्कोप तकनीक की क्षमता से बेहद उत्साहित हैं.
हम आशा करते हैं कि इसका उपयोग चूहों, मछलियों और कछुओं सहित विभिन्न प्रजातियों में चुंबकीय तत्वों का अध्ययन करने के लिए किया जाएगा. और ऐसा करके हम न केवल क्यूटिकुलोसोम पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, बल्कि अन्य संभावित चुंबकीय कणों की एक श्रृंखला का भी पता लगाने में सक्षम हो सकते हैं.