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DNA with Sudhir Chaudhary: पीएम मोदी ने 5 नॉर्डिक देशों के PM से की मुलाकात? जानें भारत को क्या हुआ हासिल
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DNA on PM Narendra Modi Denmark France Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अपने यूरोप दौरे का तीसरा और अंतिम दिन फ्रांस पहुंच गए हैं. उन्होंने फ्रांस में दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए Emmanuel Macron से मुलाकात की. इससे पहले आपको ये जानना चाहिए कि फ्रांस दौरे से पहले डेनमार्क में प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को क्या किया. आप उनके इन कार्यक्रमों को दो हिस्सों में बांट सकते हैं.
नॉरडिक देशों के पीएम से हुई मुलाकात
पहला हिस्सा- Nordic समूह में शामिल अन्य चार देशों यानी नॉर्वे, स्वीडन, फ़िनलैंड और आइसलैंड के साथ द्विपक्षीय बातचीत और दूसरा हिस्सा – Nordic देशों का शिखर सम्मेलन. आपको ये भी जानना चाहिए कि आज Nordic देशों के साथ पूरे दिन जिन मुख्य विषयों पर बात हुई, वे हैं-
– जलवायु परिवर्तन
– Green energy
– Blue Economy
– स्वास्थ्य
– वैश्विक विकास और सहयोग
– आपसी व्यापार को बढ़ाना
– सभी 5 देशों के साथ Education, Research and Development Programme को व्यवस्थित करना जैसे विष्य शामिल है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का मंगलवार को बेहद व्यस्त कार्यक्रम रहा. Nordic शिखर सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने नॉर्वे के प्रधानमंत्री Jonas Gahr Støre (जोनास गहर स्टोर) से मुलाकात की. नॉर्वे के प्रधानमंत्री Jonas Gahr Støre (जोनास गहर स्टोर) पिछले साल अक्टूबर 2021 में प्रधानमंत्री बने थे और प्रधानमंत्री मोदी से ये उनकी पहली मुलाकात थी. दोनों देशों के बीच बातचीत विकास और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के मुद्दे पर रही.
#DNA : नॉर्डिक देशों से भारत को क्या मिला?@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) May 4, 2022
कई मुद्दों पर प्रतिनिधिमंडल में बातचीत
इस दौरान blue economy, Renewable energy, Hydroelectric Power, हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर, Green energy, green hydrogen, सौर और पवन ऊर्जा Projects, Green Shipping, मछली पालन, जल प्रबंधन और जल संचयन पर बात हुई. इनके अलावा अंतरिक्ष में सहयोग और वैक्सीन के विकास के लिए साझा रिसर्च कार्यक्रम पर बात हुई.
नॉर्वे के बाद प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) की मुलाक़ात स्वीडेन की प्रधानमंत्री Magdalena Andersson (मैग्डेलेना एंडरसन) के साथ हुई. स्वीडेन ने Clean and Sustainable Energy पर सहयोग के लिए निवेश पर सहमति जताई है और जलवायु परिवर्तन पर दोनों देश साथ मिलकर काम करेंगे. इसके अलावा green hydrogen, climate technology, Defence और Space, Mining, व्यापार और आर्थिक संबंधों पर भी बातचीत हुई. दोनों देश आर्कटिक और ध्रुवीय अनुसंधान पर भी साथ काम करेंगे. साथ ही रिसर्च और अनुसंधान में IT प्रोग्राम भी चलाए जाएंगे.
नॉर्वे के बाद प्रधानमंत्री मोदी और फिनलैंड की प्रधानमंत्री Sanna Marin (सना मारिन) के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत हुई. इस मुलाकात में किन मुद्दों पर बात हुई इसकी जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्वीट कर दी.
दोनों देशों के बीच Digital Partnership को बढ़ाना , Digital Innovation, 5 G और 6G पर साझेदारी करना, बायो रिफाइनरी प्रोजेक्ट को बढ़ावा देना, क्लीन और ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देना और महिला सशक्तिकरण जैसी योजनाएं शामिल हैं.
भारत-आइसलैंड के संबंधों के 50 साल
सबसे अंत में प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) की मुलाक़ात Iceland की प्रधानमंत्री Katrin Jakobsdottir (कैटरीन जैकोब्स्दोतिर) से हुई. ख़ास बात ये है कि इस वर्ष दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों के 50 साल पूरे किए हैं. भारत और आइसलैंड के बीच किन मुद्दों पर बातचीत और समझौते हुए वो भी आपको जानना चाहिए.
दोनों देशों के बीच Geothermal Energy यानी भूतापीय ऊर्जा, Renewable energy, Digital Universities पर काम करना, blue economy, खाद्य प्रंस्करण और दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने जैसे मुद्दों पर बातचीत हुई. इसके अलावा नदियों को साफ करने के अहम विषय पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी है.
खास बात ये है कि जिस प्रकार भारत को अपने विकास के लिए सारी दुनिया से उम्मीदें रही हैं. अब दुनिया भी अपने विकास के लिए भारत से उम्मीद बांध रही है और इसे आप Iceland की प्रधानमंत्री की बातों से समझ सकते हैं.
बेहद अहम रहा पीएम मोदी का दौरा
चारों देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) की बैठकों का सारांश ये रहा कि प्रधानमंत्री मोदी का यूरोप दौरा आर्थिक नज़रिये से जितना महत्वपूर्ण है, पर्यावरण और जलवायु को लेकर भी बेहद अहम रहा. हमारे देश के अधिकतर बड़े शहर प्रदूषित हैं और इससे सीधे तौर पर करोड़ों लोग प्रभावित हैं. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी भारत के आर्थिक विकास के साथ साथ स्वच्छता के विकास पर भी पूरा जोर दे रहे हैं.
द्विपक्षीय बातचीत के बाद मंगलवार शाम 4 बजे दूसरे Nordic शिखर सम्मेलन की शुरुआत हई. इसमें प्रधानमंत्री मोदी के अलावा सभी पांचों Nordic देश के प्रधानमंत्री शामिल हुए. इनमें डेनमार्क की प्रधानमंत्री Mette Frederiksen (मेटे फ्रेडरिक्सन), फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री Sanna Marin ( सना मारिन) , आइसलैंड की प्रधानमंत्री Katrin Jakobsdottir (कैटरीन जैकोब्स्दोतिर), नॉर्वे के प्रधानमंत्री Jonas Gahr Store (जोनास गहर स्टोर) और स्वीडन की प्रधानमंत्री Magdalena Andersson (मैग्डेलेना एंडरसन) मौजूद थीं.
बैठक से पहले सभी नॉर्डिक देशों के प्रधानमंत्रियों ने एक साथ प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात की, इस मुलाकात की तस्वीर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट की. स्टॉकहोम में साल 2018 में भारत और नॉर्डिक देश पहली बार एक मंच पर इस तरह के शिखर सम्मेलन के जरिए साथ आए थे.
अब आपको बताते हैं कि आज नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में किन मुद्दों पर बात हुई. पहली बात- भारत और सभी नॉर्डिक देश, कोरोना के बाद बने हालात पर बहुपक्षीय सहयोग करेंगे. दूसरी बात- जलवायु और उससे जुड़े मुद्दों पर ये सभी देश साथ काम करेंगे. तीसरी बात- Green Energy और Blue Economy को बढ़ावा दिया जाएगा. चौथी बात – प्रधानमंत्री मोदी ने नॉर्डिक देशों को भारत के Blue Economy सेक्टर में निवेश के लिए आमंत्रित किया है. चौथी बात – प्रधानमंत्री मोदी भारत के सागरमाला प्रोजेक्ट में भी इन सभी नॉर्डिक देशों को सहयोग के लिए कहा है. दूसरी नॉर्डिक बैठक मंगलवार को सम्पन्न हो गई. अब ये सभी देश तीसरी बैठक में मिलेंगे लेकिन तीसरी इंडो नॉर्डिक समिट कहां होगी, इस पर अभी फैसला नहीं हुआ है.
आखिर कौन हैं नॉर्डिक कंट्रीज
Nordic देशों में डेनमार्क के साथ फिनलैंड, स्वीडन, नॉर्वे और आइसलैंड शामिल हैं. अब सवाल है कि आखिर वो क्या बात है जो उत्तर यूरोप के इन पांच देशों को आपस में जोड़ती है. इसका जवाब आपको इतिहास में मिलेगा. दरअसल इतिहास में इन देशों में रहने वाले लोगों को VIKINGS के नाम से जाना जाता है. 8वीं से 11वीं सदी के बीच VIKINGS की इमेज खतरनाक लुटेरों की थी.
VIKINGS के सामने कई तरह की चुनौतियां थी. वो जिन क्षेत्रों में रहते थे, वो काफी ठंडे हैं. वहां की जमीन उपजाऊ नहीं थी. इसलिए खेती करना मुश्किल था. लेकिन VIKINGS ने हार नहीं मानी. वो नए इलाकों की तलाश में nordic region से बाहर निकले. ये पूरा इलाका समुद्र से घिरा है. इसलिए VIKINGS जहाज और बड़ी नावें बनाने की कला में माहिर थे.
इन्होंने खास तरह के लंबे समुद्री जहाज बनाए थे, जो खुले समुद्रों के अलावा नदियों में भी चल सकते थे. इन जहाजों के सहारों VIKINGS ने दूर दूर तक यात्राएं की. खेती लायक जमीन को खोजा. ब्रिटेन, फ्रांस, रशिया, यूक्रेन समेत यूरोप के कई देशों में जाकर बस गए. इसी दौरान VIKINGS ने आइसलैंड और ग्रीनलैंड जैसे नए टापुओं की खोज की और वहां पहली बस्तियां बनाई. कुछ VIKINGS उत्तरी अमेरिका तक पहुंच गए. VIKINGS ने कोलंबस से लगभग 500 वर्ष पहले ही उत्तर अमेरिका में दस्तक दे दी थी.
पहले VIKINGS कहलाते थे लोग
VIKINGS इस बात के लिए भी मशहूर थे कि उनकी सेना में सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिला योद्धा भी होती थीं. आज भी NORDIC देशों में महिलाएं पुरुषों से किसी मामले में कम नहीं हैं. यूरोप और अमेरिका के आधुनिक समाज और संस्कृति पर VIKINGS की गहरी छाप देखी जा सकती है. आपके लिए ये जानना दिलचस्प होगा कि बुधवार यानी WEDNESDAY का नाम VIKINGS के देवता ODIN (ओडिन) के नाम पर पड़ा. जबकि THURSDAY का नाम VIKINGS के देवता THOR (थॉर) के नाम से जुडा है. जबकि FRIDAY को VIKINGS की देवी FREYA (फ्रेया) से जोड़कर देखा जाता है.
VIKINGS ने मुश्किल हालात पर विजय हासिल की और खुद अपना इतिहास रचा. VIKINGS को एक जमाने में लुटेरों की तरह देखा जाता था. वहीं वे आज दुनिया के सबसे विकसित लोकतांत्रिक देशों में गिने जाते हैं.
डेनमार्क की महारानी मार्गरेट द्वितीय ने मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) के सम्मान में रात्रिभोज दिया. कोपेनेहेगन के ऐतिहासिक एमैलियनबर्ग पैलेस में प्रधानमंत्री मोदी का शाही तरीके से स्वागत किया गया. इस दौरान डेनमार्क के क्राउन प्रिंस फ्रेडरिक और क्राउन प्रिंसेज मैरी भी मौजूद थीं. मार्गरेट द्वितीय को डेनमार्क की महारानी बने 50 वर्ष हो चुके हैं. राजसत्ता में महारानी की गोल्डन जुबली के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें सम्मानित किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने डेनमार्क (Denmark) की महारानी मार्गरेट द्वितीय को गुजरात की मशहूर रोगन पेंटिंग भेंट की. रोगन पेंटिंग को गर्म तेल और वनस्पतियों के रंगों को मिलाकर बनाया जाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने क्राउन प्रिंस फ्रेडरिक और प्रिंसेज मैरी को भी कलाकृतियां भेंट की
आपको डेनमार्क के राजपरिवार के बारे में भी जानना चाहिए. डेनमार्क एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन वहां monarchy यानी राजशाही अभी कायम है. ये Constitutional Monarchy है यानी संवैधानिक राजतंत्र है. Constitutional Monarchy का अर्थ है- राजपरिवार Ceremonial Head of the State होता है. यानी वो प्रतीकात्मक रूप से राष्ट्र का प्रमुख होता है. राजा या रानी को संविधान से कुछ विशेषाधिकार मिले होते हैं लेकिन असली शक्ति चुनी हुई सरकार के पास होती है.
18वीं और 19वीं सदी में जब यूरोप में लोकतंत्र और समानता की विचारधारा लोकप्रिय हो रही थी और राजतंत्र की नींव कमजोर हो रही थी. उस दौर में कई यूरोपीय देशों के राजपरिवारों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार कर लिया था.
कई देशों में राजतंत्र ने खुद को बदला
ब्रिटेन, स्वीडन, डेनमार्क, स्पेन, बेल्जियम और नीदरलैंड्स जैसे देशों के राजपरिवारों ने खुद को समय के साथ बदला और चुनी हुई सरकारों को सत्ता सौंप दी. इसका नतीजा ये रहा कि इन सारे देशों में राजपरिवार आज भी बने हुए हैं और वहां Constitutional Monarchy है. इन तमाम देशो में राजपरिवारों का सम्मान है और राजमहल को देश की प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर देखा जाता है. जैसे लंदन में बकिंघम पैलेस.
इसके विपरीत, जिन देशों के राजपरिवारों ने बदलते समय को नहीं पहचाना, वो क्रांति की आंधी में उड़ गए. उनका आज नामोनिशान नहीं है. फ्रांस और रूस के राजघराने इसके उदाहरण हैं. 1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति के बाद वहां के शासक Tsar (ज़ार) निकोलस द्वितीय की हत्या कर दी गई. इसी तरह फ्रांस में 1789 की क्रांति के बाद लुईस Sixteenth को सजा ए मौत दी गई थी.
डेनमार्क (Denmark) में 1849 में लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत हो गई थी और तब से वहां Constitutional Monarchy है. वहां के महाराज या महारानी को संविधान के तहत सीमित अधिकार हासिल होते हैं.
डेनमार्क का राजपरिवार यूरोप के सबसे पुराने राजपरिवारों में शामिल है. इसका इतिहास करीब 1100 साल पुराना है. हम आपको बता चुके हैं कि मार्गरेट द्वितीय को 50 साल पहले डेनमार्क की महारानी का ताज मिला था. 1972 से वो डेनमार्क के राजपरिवार की प्रमुख हैं. अब उनकी उम्र 82 साल हो चुकी है. वो डेनमार्क की दूसरी महारानी हैं.
डेनमार्क राजतंत्र में 2 नामों का चलन
डेनमार्क के राजपरिवार के इतिहास से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य हम आपको बताते हैं. पिछले 500 वर्ष में डेनमार्क के राजाओं के दो ही नाम रहे हैं- फ्रेडरिक और क्रिश्चियन. किसी अन्य नाम का कोई राजा डेनमार्क की गद्दी पर नहीं बैठा. दरअसल डेनमार्क में वर्ष 1513 से ये परंपरा चली आ रही है. अगर राजा का नाम फ्रेडरिक होता है तो वो अपने बड़े बेटे का नाम क्रिश्चियन रखता है. और फिर जब क्रिश्चियन बड़ा हो कर King बनता है तो वो अपने बड़े बेटे का नाम फ्रेडरिक रखता है.
उदाहरण के तौर पर, डेनमार्क की मौजूदा महारानी मार्गरेट द्वितीय के दादा का नाम किंग क्रिश्चियन था, जबकि उनके पिता का नाम फ्रेडरिक था. हालांकि ये परंपरा राजपरिवार के पुरुष उत्तराधिकारियों पर ही लागू होती है. एक और बताते चलें कि डेनमार्क (Denmark) के राजघराने का संबंध ब्रिटेन के राजपरिवार से भी है. इन दोनों देशों की महारानियों की एक दूसरे से रिश्तेदारी है. ब्रिटिश queen एलिजाबेथ द्वितीय डेनमार्क की महारानी की third cousin हैं.
आम तौर राजपरिवारों को लेकर आपके मन में जो छवि है, डेनमार्क का शाही खानदान उससे बिलकुल अलग है. राजपरिवारों को शान शौकत, ऐशो आराम और Luxury लाइफ से जोड़ा जाता है लेकिन डेनमार्क के राजपरिवार के सदस्य सामान्य लोगों की तरह जीवन बिताते हैं. राजपरिवार के बच्चे सामान्य स्कूलों में पढ़ते हैं. अगर आप कोपेनहेगन जाएं, तो वहां की सड़कों पर राजपरिवार के सदस्य साइकिल चलाते मिल जाएंगे. हो सकता है कि डेनमार्क के राजकुमार आपको किसी छोटी सी दुकान पर सामान खरीदते दिख जाएं.
हैप्पी इंडेक्स में डेनमार्क दूसरे नंबर पर
डेनमार्क दुनिया में ऐसे देश के रूप में मशहूर है, जहां के लोग बहुत खुश रहते हैं. आज जब दुनिया के ज्यादातर देशों में लोग तमाम तरह की तकलीफों और परेशानियों का सामना कर रहे हैं, वहीं डेनमार्क के लोगों के जीवन में दुखों के बादल नहीं के बराबर हैं.
World Happiness Index में डेनमार्क (Denmark) दूसरे नंबर पर है. 2016 में वो नंबर 1 पर था. उसके बाद से डेनमार्क लगातार नंबर 2 पर बना हुआ है. भारत इस लिस्ट में 136 वें नंबर पर है. इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि भारत और डेनमार्क में कितना फर्क है. सिर्फ डेनमार्क ही नहीं, तमाम Nordic Countries इस रैंकिंग में top 10 में रही हैं.
आपके मन में सवाल होगा कि आखिर डेनमार्क में ऐसा क्या है कि वहां के लोग इतने खुश रहते हैं. जिंदगी के तमाम दुख उन पर हावी क्यों नहीं होते हैं. लेकिन पहले ये जान लीजिए कि खुशी को मापने का पैमाना क्या है. आखिर Happiness Index किस आधार पर तैयार किया जाता है.
Social Support (सामाजिक समर्थन), Health Life Expectacny (स्वस्थ जीवन की आशा), जीवन में फैसले लेने की स्वतंत्रता, दयाभाव, भ्रष्टाचार और GDP, इन मानकों के आधार पर Happiness का आकलन किया जाता है.
जीवन में खुशी के लिए सबसे जरूरी है विश्वास और ईमानदारी. अगर आपके आसपास ऐसे लोग हैं, जो आपको भरोसे की कसौटी पर खरे उतरते हैं तो आप दुखी नहीं होंगे. अगर ऐसे लोग पूरे समाज में मौजूद हों तो समाज भी दुखी नहीं होगा.
विश्व के सबसे भ्रष्टाचारमुक्त देशों में डेनमार्क (Denmark) नंबर वन पर है. डेनमार्क की संस्कृति में ईमानदारी और विश्वास का काफी महत्व है. लोग एक दूसरे के विश्वास की कसौटी पर खरे उतरते हैं. ईमानदारी का पालन निजी संबंधों से लेकर सार्वजनिक जीवन तक किया जाता है. सरकारी विभाग हो या प्राइवेट कंपनी, भ्रष्टाचार के लिए कहीं कोई जगह नहीं है. करप्शन नहीं होने की वजह से सिस्टम ठीक से काम करता है और लोगों को बेवजह की दिक्कतें नहीं होती हैं.
हम सबके जीवन के दो पहलू होते हैं. Personal और Professional, इन दोनों के बीच जब बैलेंस यानी संतुलन बना होता है, तब हम खुश रहते हैं.
कर्मचारियों को सप्ताह में केवल 37 घंटे काम
डेनमार्क में Work-Life balance पर काफी ध्यान दिया जाता है. वहां किसी भी कर्मचारी को सप्ताह में 37 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना पड़ता है. डेनमार्क में लोगों के लिए बेरोजगारी बड़ी समस्या नहीं है. वहां job security है. इसके लिए डेनमार्क ने एक नया model तैयार किया है, जिसका नाम- flexicurity (फ्लैक्सीक्युरिटी) है. इसके तहत अगर किसी व्यक्ति की नौकरी चली जाती है तो सरकार उसे दोबारा नौकरी दिलवाने की कोशिश में जुट जाती है. ऐसे लोगों को job insurance यानी रोजगार बीमा का फायदा मिल सकता है. इसके अलावा काउंसलिंग और प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जाती है. जो लोग बीमारी की वजह से नौकरी गंवा देते हैं, उन्हें सरकार भत्ता भी देती है.
भारत समेत दुनिया के ज्यादातार देशों में लोग टैक्स के बोझ से परेशान रहते हैं. लेकिन डेनमार्क (Denmark) के लोग भारी भरकम टैक्स देकर भी खुश होते हैं. डेनमार्क की गिनती दुनिया के उन देशों में की जाती है, जहां टैक्स सबसे ज्यादा है. डेनमार्क में ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं पर VAT 25 प्रतिशत है. डेनमार्क में कुछ Category की कारों पर टैक्स 150 प्रतिशत तक है. इतना भारी टैक्स चुकाने के बावजूद डेनमार्क के लोगों को कोई शिकायत नहीं है. 90 प्रतिशत लोग टैक्स चुकाकर खुशी महसूस करते हैं.
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ज्यादा टैक्स चुकाने पर भी रहते हैं खुश
अब देखिए कि इस भारी टैक्स का फायदा कैसे वहां के लोगों को मिलता है. डेनमार्क में आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं के लिए सरकार मुफ्त व्यवस्था करती है. ज्यादातर बीमारियों के इलाज में पैसा नहीं लगता है. डेनमार्क के विश्वविद्यालयों में ट्यूशन फीस फ्री है. छात्रों को सरकार पढ़ाई के लिए मदद देती है. बच्चों की देखरेख के लिए भी सरकार अनुदान देती है. डेनमार्क (Denmark) में पेंशन सिस्टम भी शानदार है. वहां 65 साल से ऊपर के लोगों के लिए सरकार के अलावा Employer की तरफ से भी पेंशन का विकल्प है. इसके अलावा बुजुर्गो के घर पर देखभाल के लिए attendent की व्यवस्था भी की जाती है.
सबसे बड़ी बात कि डेनमार्क (Denmark) के लोग जानते हैं कि खुशी बांटने से बढ़ती है. इसलिए वो एक दूसरे की खुशी का ख्याल रखते हैं. इसलिए पूरा देश खुश रहता है.