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DNA Analysis: आर्थिक सुनामी में डूब गया श्रीलंका! आखिर देश से कहां हो गई गलती, जिसका खामियाजा भुगत रहे 2 करोड़ लोग

Reason for the Economic Crisis of Sri Lanka: श्रीलंका (Sri Lanka) से पहली गलती ये हुई कि उसने अपनी अर्थव्यवस्था को दूसरे देशों से लिए गए कर्ज पर निर्भर बना दिया. वर्ष 2016 में श्रीलंका पर 46 Billion US Dollar यानी 3 लाख 63 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज था. लेकिन सिर्फ 6 वर्षों में अब ये दोगुने से भी ज़्यादा हो गया है. अप्रैल महीने तक श्रीलंका पर साढ़े 6 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था. ये श्रीलंका की सालाना GDP के बराबर है, जो 81 Billion US Dollar यानी भारतीय रुपयों में 6 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपये की है. यानी श्रीलंका ने कर्ज लेते समय इस बात का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा कि उसे ये पैसा ब्याज के साथ वापस लौटाना होगा. 

चीन ने उठाया श्रीलंका का फायदा

अगर वो ये पैसा नहीं लौटा पाया तो उसकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी. चीन जैसे देशों ने श्रीलंका की इसी कमी का फायदा उठाया. आज श्रीलंका पर जो कुल कर्ज है, उसमें चीन की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज़्यादा की है. श्रीलंका (Sri Lanka) से दूसरी ग़लती ये हुई कि उसने कर्ज तो ले लिया, लेकिन इस कर्ज का इस्तेमाल सही जगह नहीं किया. यानी अगर वो ये पैसा श्रीलंका के औद्योगिक क्षेत्र पर खर्च करता, वहां बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां लगाता और देश में एक नया आय स्रोत पैदा करता तो शायद ये कर्ज उसे इतनी तकलीफ़ नहीं देता. श्रीलंका के पास ज्यादा आय स्रोत नहीं है और उसे सबसे ज्यादा आमदनी पर्यटन, चाय और कपड़ा उद्योग से होती है.

वर्ष 2018 में श्रीलंका सरकार को Tourism Sector से 5.6 Billion Dollar यानी 44 हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी. लेकिन कोविड के बाद इस आय स्रोत पर भी लॉकडाउन लग गया और साल 2021 में श्रीलंका सरकार को इस क्षेत्र से सिर्फ़ 2 हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी हुई. यानी जो पर्यटन क्षेत्र 2018 में 44 हज़ार करोड़ रुपये का था, वो सिकुड़ कर 2 हज़ार करोड़ रुपये का रह गया. इसी तरह चाय उद्योग और कपड़ा उद्योग की भी कमर टूट गई. नटशेल में कहें तो श्रीलंका ने अपने आय स्रोत भी नहीं बढ़ाए और वो कर्ज भी लगातार लेता चला गया.

राजपक्षे परिवार ने जमकर किया भ्रष्टाचार

एक और बात, दूसरे देशों से लिया गया ये कर्ज भ्रष्टाचार की भेंट भी चढ़ा. वर्ष 2015 में जब श्रीलंका में राष्ट्रपति के चुनाव हुए थे. तब राजपक्षे परिवार ने चीन की कम्पनियों से लिया कर्ज अपने चुनाव प्रचार पर खर्च किया था. आरोप लगते हैं कि चीन खुद चाहता था कि महिन्दा राजपक्षे इस चुनाव में जीत जाए और इसीलिए उसकी कम्पनियां श्रीलंका को भारी भरकम कर्ज देने के लिए तैयार हो गईं.

इसके अलावा प्रधानमंत्री रहते हुए महिन्दा राजपक्षे ने सबसे बड़ी गलती ये की कि वो चीन के कर्ज के जाल में फंसते चले गए. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.. श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह. महिन्दा राजपक्षे ने इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए चीन से भारी भरकम कर्ज लिया. लेकिन जब वो ये कर्ज लौटा नहीं पाए तो उन्हें ये बंदरगाह चीन को 99 साल के लिए Lease पर देना पड़ा.

श्रीलंका (Sri Lanka) से तीसरी ग़लती ये हुई कि उसने आत्मनिर्भर बनने की कभी कोशिश नहीं की. आज श्रीलंका नमक, कागज़ और कपड़ा सीलने की एक छोटी सुईं तक के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. श्रीलंका के नागरिक जिन वस्तुओं और सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से ज़्यादातर बाहर से आती हैं. अब दूसरे देशों से सामान खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा चाहिए होती है और श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा का यही भंडार लगभग समाप्त हो है.

श्रीलंका के पास बचे केवल 2 बिलियन डॉलर

अभी श्रीलंका के पास 2 Billion Dollar से भी कम यानी भारतीय रुपयों में साढ़े 15 हज़ार करोड़ रुपये ही विदेशी मुद्रा के रूप में बचे है. जबकि कच्चे तेल और दूसरी चीज़ों के आयात पर ही उसका एक साल का खर्च 91 हज़ार करोड़ रुपये है. अगर श्रीलंका अपनी ज़रूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं होता तो आज उसकी ये स्थिति नहीं होती. आप कह सकते हैं कि.. तब वो आर्थिक अस्थिरता में भी खुद को सम्भाल लेता. लेकिन जब कोई देश पूरी तरह आयात पर निर्भर हो जाता है तो ऐसी स्थिति में अगर उसके पास विदेशी मुद्रा नहीं रहे तो उसके भूखे मरने की नौबत आ जाती है.

आज श्रीलंका (Sri Lanka) के पास विदेशी मुद्रा नहीं है तो वो ना तो कच्चा तेल खरीद सकता है, ना गैस खरीद सकता है, ना कागज खरीद सकता है और ना ही एक छोटी सी सुईं खरीद सकता है. आयात पर निर्भरता और दूसरे देशों से लिए गए कर्ज की वजह से श्रीलंका की आमदनी और खर्च में एक बड़ी खाई पैदा हो चुकी है. श्रीलंका का राजकोषीय घाटा लगभग 11 प्रतिशत है. आमदनी और खर्च के बीच जो अंतर होता है, उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं.

राजकोषीय घाटा बढ़कर 11 प्रतिशत हुआ

जैसे श्रीलंका का राजकोषीय घाटा 11 प्रतिशत है तो इसका मतलब ये हुआ कि श्रीलंका को हर 100 रुपये की आमदनी पर 111 रुपये खर्च करने होते है. महत्वपूर्ण बात ये है कि श्रीलंका सरकार सबसे ज्यादा खर्च अपने नागरिकों पर नहीं करती बल्कि सबसे ज्यादा खर्च, कर्ज के भुगतान पर होता है. वर्ष 2020 में श्रीलंका सरकार ने हर 100 रुपये में से 70 रुपये कर्ज के भुगतान पर खर्च किए थे.

इसके अलावा श्रीलंका (Sri Lanka) के सामने अभी एक और बड़ी चुनौती है. श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार में साढ़े 15 हज़ार करोड़ रुपये ही बचे हैं. जबकि इसी साल उसे 7 Billion Dollar यानी भारतीय रुपयों में 55 हज़ार 300 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना है. यानी श्रीलंका के पास ना तो कर्ज चुकाने के लिए पैसा है और ना ही वो अपने लोगों को पेट्रोल, डीज़ल, गैस और दूसरी मूलभूत ज़रूरतें उपलब्ध करा सकता है. 

मुफ्तखोरी ने डुबो दिया श्रीलंका

श्रीलंका की इस बदहाली की एक और बड़ी वजह है, मुफ्तखोरी की राजनीति. वर्ष 2019 में जब श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे, तब श्रीलंका के राजपक्षे परिवार ने ऐलान किया था कि अगर चुनाव में उनकी पार्टी जीत गई तो वो देश में वस्तुओं पर सेवाओं पर लगाए जाने वाले Value Added Tax यानी VAT को आधा कर देगी. जब चुनाव में राजपक्षे परिवार की पार्टी जीती तो वादे के तहत VAT को 15 प्रतिशत से घटा कर 8 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे श्रीलंका को उसकी GDP के 2 प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ. यानी इस पूरे घटनाक्रम में तीन बड़े सबक हैं.

पहला, लोकतंत्र में लोगों की ताकत से बड़ा कुछ नहीं होता. दूसरा,  सरकार की मनमानी और भ्रष्टाचार ज्यादा दिन नहीं चलती और तीसरा, उधार की जिन्दगी बहुत छोटी होती है.

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