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60 साल बाद जारी हुआ सबसे खतरनाक बम का वीडियो, मिटा सकता था दुनिया का नामोंनिशान

नई दिल्ली: आप अमेरिका की ओर से जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बमों के बारे में जानते होंगे. कुछ दिनों पहले ऐसा ही जोरदार धमाका लेबनान की राजधानी बेरूत में देखने को मिला. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रूस ने ऐसा एक परमाणु बम बना लिया था. जो पूरी दुनिया का खात्मा कर सकता था. करीब 60 साल तक सीक्रेट रखने के बाद रूस ने इस परमाणु बम परीक्षण का वीडियो जारी कर दिया है. यह परमाणु बम यदि अपनी पूरी क्षमता से फटता तो दुनिया में मानवता का ख़ात्मा हो जाता. 

रूस ने 1961 में बनाया दुनिया का सबसे बड़ा बम


वर्ष 1961 में आज के रूस और तत्कालीन सोवियत संघ ने दुनिया के सबसे बड़े, शक्तिशाली और ख़तरनाक हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था. उस वक़्त ये धमाका दुनिया के लिए टॉप सीक्रेट था.जिसके बारे में धमाका करने वाले रूस के अलावा किसी भी देश को कानों कान तक ख़बर नहीं हुई थी. रूस ने 60 साल बाद अपने सबसे बड़े परमाणु बम विस्फोट का वीडियो दुनिया के सामने जारी किया है. 

अमेरिका के ‘लिटिल ब्वॉय’ से 3333 गुना शक्तिशाली था ‘इवान’


‘इवान’ नामक इस परमाणु बम की ताक़त का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जापान के हिरोशिमा में गिराए गए अमेरिका के परमाणु बम ‘लिटिल ब्वॉय’ से यह 3333 गुना ज़्यादा शक्तिशाली था. यानि कि इससे होने वाली तबाही भी हिरोशिमा में हुई तबाही से 3333 गुना ज़्यादा होती.

शीत युद्द में अमेरिका से आगे निकलने के लिए रूस ने बनाया था बम


अमेरिका के साथ चल रहे कोल्ड वॉर के दौरान अपनी ताक़त दिखाने के लिए रूस ने 30 अक्टूबर 1961 को बैरंट सागर में ये परीक्षण किया था. इस परमाणु बम की विनाशक क्षमता को देखते हुए इसे धरती के ख़ात्मे का हथियार कहा जाता है. 

दुनिया का सबसे शक्तिशाली बम था ‘इवान’


रूस का यह ‘इवान’ परमाणु बम विस्फोट दुनिया में अब तक हुए परमाणु विस्फोटों में सबसे शक्तिशाली था. यह क़रीब 50 मेगाटन का था और  5 करोड़ टन परंपरागत विस्फोटकों के बराबर ताक़त से फटा था.

असर कम करने के लिए आर्कटिक सागर में गिराया था बम


यही वजह है इस परमाणु बम को रूसी विमान ने आर्कटिक समुद्र में नोवाया जेमल्या के ऊपर बर्फ़ में गिराया था. ताकि किसी भी तरह की आबादी से धमाके वाली जगह सैंकड़ों हज़ारों मील दूर हो

दुनिया का हो सकता था खात्मा


रूस ने जिस इलाक़े में दुनिया के सबसे शक्तिशाली बम का परीक्षण किया था . वो इलाक़ा भूगोल धमाके के बाद पूरी तरह से बदल गया था. दुनिया ने उस वक़्त परमाणु बम की तबाही तो देख ली थी. लेकिन रूस ने इस परीक्षण से साबित कर दिया था कि दोबारा कभी परमाणु युद्ध छिड़ा तो दुनिया से मानवता का ख़ात्मा भी हो सकता है 

VIDEO भी देखें 

एटम बम और हाइड्रोजन बम की तकनीक मिलाकर तैयार हुआ था बम


एटम बम और हाइड्रोजन बम की तकनीक मिलाकर तैयार किया गया ज़ार बम. ज़ार बम अगर पूरी ताक़त से फटता तो कुछ भी नहीं बचता. यही वजह है बम तैयार होने के बाद वैज्ञानिकों को ये डर लगा कि कहीं एटमी टेस्ट इतना भयानक न हो कि उससे सोवियत संघ को ही नुक़सान पहुंचे. इसीलिए इसमें विस्फोटक कम कर दिए गए थे.

खास लड़ाकू विमान से गिराया गया था इवान बम


ये इतना विशाल एटम बम था कि इसके लिए ख़ास लड़ाकू जहाज़ बनाया गया. आम तौर पर हथियार और मिसाइलें लड़ाकू जहाज़ों के भीतर रखी जाती हैं. लेकिन जिस ज़ार बम यानी सबसे बड़े एटम बम को सोवियत वैज्ञानिकों ने बनाया था. वो इतना बड़ा था कि उसे विमान से पैराशूट के ज़रिए लटका कर रखा गया था. इसके लिए सोवियत लड़ाकू विमान तुपोलोव-95 के डिज़ाइन में बदलाव किए गए थे.

30 अक्टूबर 1961 के रूस के जहाज ने भरी थी उड़ान


30 अक्टूबर 1961 को Tu-95 विमान ने पूर्वी रूस से उड़ान भरी थी. इसमें उस वक़्त का सबसे बड़ा एटम बम यानी ज़ार बम रखा गया था, जिसका परीक्षण किया जाना था. ये एटम बम 8 मीटर लंबा और 2.6 मीटर चौड़ा था. इसका वज़न 27 टन से भी ज़्यादा था. ये बम, अमरीका के लिटिल बॉय और फैट मैन एटम बमों जैसा ही था. मगर उनसे बहुत बड़ा था. ये पल भर में एक बड़े शहर या छोटे देश को ख़ाक में तब्दील कर सकता था..

दोनों विमानों को विकिरण से बचाने के लिए खास पेंट किया गया था


सोवियत लड़ाकू जहाज़ टुपोलोव-95 इसे लेकर रूस के पूर्वी इलाक़े में स्थित द्वीप नोवाया ज़ेमलिया पर पहुंचा. इसके साथ ही एक और विमान उड़ रहा था, जिसको कैमरे के ज़रिए बम के विस्फोट की तस्वीरें उतारनी थीं.इन विमानों पर ख़ास तरह का पेंट भी किया गया था जिसका मकसद विमानों को परमाणु बम के विकिरण से बचाना था

जमीन से 10 किमी ऊंचाई से गिराया गया बम


ज़ार बम को टुपोलोव विमान ने क़रीब दस किलोमीटर की ऊंचाई से पैराशूट के ज़रिए गिराया … इसकी वजह ये थी कि जब तक विस्फोट हो, तब तक गिराने वाला लड़ाकू जहाज़ और तस्वीरें उतारने के लिए गया विमान, दोनों सुरक्षित दूरी तक पहुंच जाएं. 

बम गिराते ही तुरंत दूर भागे दोनों विमान


बम गिराकर दोनों विमान क़रीब पचास किलोमीटर दूर पहुंचे तब एक भयंकर विस्फोट हुआ…. आग का विशालकाय गोला धरती से उठकर आसमान पर छा गया. विस्फोट से क़रीब पांच मील चौड़ा आग का गोला उठा था. इसके शोले इतने भयंकर थे कि इसे एक हज़ार किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था. 

धमाके से पूरी तरह तबाह हो गया नोवाया जेमलिया द्वीप


दुनिया के सबसे ताक़तवर एटम बम के इस धमाके से पूरा नोवाया ज़ेमलिया द्वीप तबाह हो गया. सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित घरों को भी विस्फोट की वजह से काफ़ी नुक़सान पहुंचा था. रूस ने सिर्फ़ ताक़त दिखाने के लिए इस बम का परीक्षण किया था. अगर जो अमेरिका ने जापान के साथ किया था वहीं काम अगर रूस किसी देश के साथ कर देता तो दुनिया का क्या होता. इसकी बस कल्पना भी नहीं की जा सकती है.  

दुनिया के सबसे शक्तिशाली बम बनाने की भूमिका तो दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म होने के साथ ही रखी गई थी. दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म होते ही अमरीका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध छिड़ गया था. दोनों देश एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए एक से एक ख़तरनाक हथियार बना रहे थे

अमेरिका से आगे निकलने की होड़ में रूस ने बनाया था बम


एटम बम के मामले में अमरीका से पिछड़ा सोवियत संघ, एक ऐसा बम बनाने के लिए बेक़रार था, जो दुनिया में सबसे बड़ा हो. इस बीच वर्ष 1954 में अमेरिका ने अपने सबसे बड़े थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस का मार्शल आईलैंड पर परीक्षण किया था. यह डिवाइस 15 मेगाटन का था. इसका नाम कास्टल ब्रावो था. 

यह उस समय के सभी परमाणु बमों से ज़्यादा ताक़तवर था. इसकी सूचना जब सोवियत संघ को लगी तो उसने अमेरिका को टक्कर देने की ठानी. सोवियत संघ ने अमेरिका के जवाब में ज़ार बम बनाया

सोवियत संघ के वैज्ञानिक आंद्रेई सखारोव थे ‘इवान’ के जनक


सोवियत संघ के एटमी वैज्ञानिक आंद्रेई सखारोव ने आख़िरकार साठ का दशक आते-आते सोवियत संघ ने अपने सपनों वाला बम बना लिया. इसे नाम दिया गया ज़ार का बम. ज़ार रूस के राजाओं की उपाधि थी. उन्हीं के नाम पर कम्युनिस्ट सरकार ने इसे ज़ार का बम नाम दिया.

इस एटम बम के परीक्षण से इतनी एनर्जी निकली थी जितनी पूरे दूसरे विश्व युद्ध मे इस्तेमाल हुए गोले-बारूद से निकली थी. इससे निकली तरंगों ने तीन बार पूरी धरती का चक्कर लगा डाला था.

दुनिया ने सोवियत संघ के एटमी धमाके की निंदा की थी


पास में ही अमरीका का एक खुफ़िया विमान भी उड़ रहा था, जिसे इस एटमी टेस्ट की भनक लग गई थी. पूरी दुनिया ने सोवियत संघ के एटमी टेस्ट करने की निंदा की. राहत की बात ये रही कि इससे बहुत ज़्यादा रेडिएशन नहीं फैला. इसकी वजह ये थी कि बम के तैयार होने के बाद वैज्ञानिकों को लगा कि इससे तो बहुत तबाही मच जाएगी. इसलिए इसकी ताक़त घटा दी गई थी…

धमाके के बाद दुनिया के देशों ने खुले में एटमी टेस्ट न करने की संधि की


इस बम को तैयार करने में सोवियत वैज्ञानिक आंद्रेई सखारोव का बहुत बड़ा रोल था. सखारोव चाहते थे कि हथियारों की रेस में उनका देश अमरीका से बहुत आगे निकल जाए. इस विस्फोट का असर ये हुआ था कि दुनिया के तमाम देश खुले में एटमी टेस्ट न करने को राज़ी हो गए. 1963 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संधि हुई और ऐसे एटमी परीक्षणों पर रोक लगा दी गई.

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