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सोवियत संघ में दरार से पहले का Russia और यूक्रेन कैसा था?

Russia Ukraine Conflict: आपको सोवियत संघ के Russia में और आज के Russia में अंतर समझना चाहिए. 1991 में सोवियत संघ के विघटन से पहले यूक्रेन में जनमत संग्रह हुआ था, जिसमें यूक्रेन के लोगों से पूछा गया था कि वो सोवियत संघ का हिस्सा बने रहना चाहेंगे या अलग देश बनना चाहेंगे. तब 92 प्रतिशत लोगों ने यूक्रेन को अलग देश बनाने के लिए अपना मत दिया था. ये जनमत संग्रह उस समय के सोवियत नेता, Mikhail Gorbachev (मिखायल गोर्बाचोफ़) ने कराया था. लेकिन आज के Russia में पुतिन यूक्रेन को चुनौती दे रहे हैं. और बिना डरे अपनी नीतियों पर अमल कर रहे हैं.

सोवियत संघ के विघटन से पहले Russia और यूक्रेन..

सोवियत संघ के विघटन से पहले भी Russia और यूक्रेन काफी मजबूत थे. तब सोवियत संघ में क्षेत्रफल के लिहाज से Russia के बाद यूक्रेन सबसे बड़ा देश था और अर्थव्यवस्था के मामले में भी यूक्रेन के पास बड़ी ताकत थी. लेकिन 20वीं सदी के इतिहास, अर्थव्यवस्था, विचाराधारा और तकनीक को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला सोवियत संघ, आज से 30 वर्ष पहले, 26 दिसम्बर 1991 को एक ही रात में कैसे टूट गया था, इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है. 

सोवियत संघ के विघटन के पांच बड़े कारण

पहला कारण ये था कि सोवियत संघ, कभी भी एक राष्ट्र नहीं था. बल्कि ये अलग अलग देशों, भाषाओं और संस्कृतियों को मिला जुला कर बनाया गया एक राजनीतिक संघ था, जिसकी स्थापना वर्ष 1917 में रशिया की साम्यवादी क्रान्ति के बाद हुई थी. लेकिन सैद्धांतिक और मूल विचारों से सोवियत संघ कभी भी संगठित नहीं था. इसमें कम से कम 100 अलग-अलग राष्ट्रीयता के लोग शामिल थे. सोवियत संघ में कुल 15 देश शामिल थे. इनमें मध्य एशिया के मुस्लिम देश भी थे, जैसे उज़्बेकिस्तान, कज़ाकस्तान, तजाकिस्तान और किर्गिज़स्तान. इसके अलावा पूर्वी यूरोप के भी कुछ देश थे, जहां की 90 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म के लोगों की थी. ये देश थे, Latvia, Estonia (एस्टोनिया), यूक्रेन, बेलारूस और जॉर्जिया. Russia, सोवियत संघ में क्षेत्रफल के मामले में सबसे बड़ा, सबसे अमीर और सबसे ताक़तवर देश था. और वहां Communist शासन की जड़ें काफ़ी गहरी थीं. जिसकी वजह से सोवियत संघ को एक तरह से Russia द्वारा ही संचालित किया जाता था.

1991 में सोवियत संघ का विघटन

इन्हीं विविधताओं की वजह से सोवियत संघ में कभी Uniformity स्थापित नहीं हुई और वर्ष 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ और 15 देश अस्तित्व में आए, तब इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही रहा. दुनिया के ज्यादातर इतिहासकार इस बात पर सहमति जताते हैं कि अगर सोवियत संघ, राजनीतिक संघ बनने की बजाय एक राष्ट्र के रूप में काम करता तो शायद इसका विघटन होता ही नहीं. और शायद Russia, आज अमेरिका की तुलना में अधिक शक्तिशाली और प्रभावी होता.

सोवियत संघ, अमेरिका से पिछड़ता चला गया

इस विघटन का दूसरा कारण था अर्थव्यवस्था- सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था Communist सिद्धांतों से प्रेरित थी, जिसमें उत्पादन को समाज की संपत्ति माना जाता हैं. यानी एक ऐसी व्यवस्था, जिसमें किसान जिस ज़मीन पर खेती करता है, उस ज़मीन का नियंत्रण भी सरकार के पास होता है. इन नीतियों की वजह से सोवियत संघ, अमेरिका से पिछड़ता चला गया और वर्ष 1980 के दशक में सोवियत संघ की GDP, अमेरिका से आधी रह गई. जिसके बाद Russia कमज़ोर होता चला गया और सहयोगी देशों में अंसतोष काफ़ी बढ़ गया.

अमेरिका ने सोवियत संघ को कर दिया कमजोर

दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका के बीच लगभग 45 वर्ष लम्बा शीत युद्ध लड़ा गया, जिसने सोवियत संघ का काफ़ी कुछ दांव पर लगा दिया था. ये बात वर्ष 1945 से 1990 के बीच की है. उस समय इस संघ के देशों के सामने अर्थव्यवस्था को बचाने के साथ शीत युद्ध को जारी रखने की चुनौती थी और यही दबाव, सोवियत संघ को अन्दर से विभाजित कर रहा था. अमेरिका ने इसी का फायदा उठाया और धीरे-धीरे सोवियत संघ के सहयोगी देशों में फूट डाल कर उनका Russia से मोहभंग किया गया.

..सोवियत संघ दुनिया के लिए मजाक बन गया

आज जिस तरह अमेरिका, आतंकवाद और दूसरे मुद्दों की आड़ में दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल देता है. एक समय ऐसा ही रवैया सोवियत संघ का था, जिसने वर्ष 1980 से 1988 के बीच अफगानिस्तान में अपनी सेना को तैनात किया और वहां की कट्टरपंथी मुजाहिद्दीन ताकतों से संघर्ष किया. लेकिन अमेरिका की तरह, सोवियत संघ को भी शर्मिंदा होकर, 15 फरवरी 1989 को अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ा था. माना जाता है कि अफगानिस्तान में सोवियत संघ के साथ जो हुआ, उसने उसकी ताक़त को दुनिया के नक्शे पर काफ़ी कमज़ोर कर दिया. और सोवियत संघ दुनिया के लिए मज़ाक़ का विषय़ बन गया.

तो शायद सोवियत संघ का विघटन न होता

कट्टरपंथी ताक़तें, कैसे दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति को भी बर्बाद कर सकती हैं, सोवियत संघ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वर्ष 1991 में सोवियत रूस में तख़्तापलट की कोशिश हुई थी और उस समय के सोवियत नेता रहे Mikhail Gorbachev (मिखायल गोर्बाचोफ़) को नज़रबन्द कर दिया गया. और सोवियत रूस में बोरिस येल्तसिन ने चुनाव जीत लिया था. इससे संघ के दूसरे देशों में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हुई और बाकी देश अपने भविष्य को लेकर चिंता में आ गए. इस तख्तापलट का कारण था, कट्टरपंथी Communist ताक़तों की मनमानी. अगर तब इन कोशिशों को रोका गया होता तो शायद ये विघटन होता ही नहीं.

अखंड भारत भी अस्तित्व में था..

अखंड Russia की तरह, आज से डेढ़ हज़ार साल पहले अखंड भारत भी अस्तित्व में था. एक ज़माने में अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान, पाकिस्तान और बांग्लादेश अखंड भारत का हिस्सा हुआ करते थे. और उस समय भारत की सीमाएं अफगानिस्तान के पार जाकर ईरान को लगती थीं. वर्ष 980 में यानी आज से करीब एक हज़ार वर्ष पहले अफगानिस्तान पर राजा जयपाल का शासन था. और वो एक हिंदू थे. लेकिन मुस्लिम शासकों ने उन पर हमला करके उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया और इसके बाद धीरे-धीरे अफगानिस्तान, भारत वर्ष के नक्शे से बाहर चला गया. अब आप ज़रा विचार कीजिए कि क्या आज की मौजूदा पीढ़ी इस बात पर भरोसा कर सकती है कि अखंड भारत की सीमाएं ईरान तक लगती थीं.

भारत को भी अपना रूख स्पष्ट करना होगा

आज इस मामले में भारत को भी अपना रूख स्पष्ट करना होगा. भारत अब तक इस मामले में निष्पक्ष बना हुआ है. वो ना तो खुल कर Russia का समर्थन कर रहा है और ना ही यूक्रेन का. अब इमरान खान कल मॉस्को जाने वाले हैं और Russia के राष्ट्रपति पुतिन भी अगले पाकिस्तान के दौरे पर जा सकते हैं. इसलिए भारत को भी नए समीकरणों पर विचार करना चाहिए. और इस मामले पर अपना स्टैंड लेना चाहिए.

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